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जैनवालवोधकसमय पिताने आकर कहा कि आप एक राजकन्याके साथ विवाह करें जिससे अपने वंशकी रक्षा हो जिसप्रकार नाभिराज की इच्छा आदिनाथ भगवानने पूर्ण की थी वैसी तुम हमारी इच्छा पूर्ण करो। यह पिताके वचन सुनकर भगवानने कहा कि 'श्रादिनाथ भगवानकी समान मेरी उमर कहां है ? मेरी उमर कुल १०७ वर्षकी है उसमें से लोलह वर्ष तो बालकपनके खेल कूद में ही चले गये और तीस वर्ष, दीक्षा लेनी है तव थोडेसे दिन के लिये थोड़ेसे सुखके लिये यह उपाधि किस लिये लगाऊं। इसप्रकार भगवानकी विवाह करने की इच्छा न देख पिताको उदासी अवश्य हुई। परंतु अवधिज्ञानसे उन्होंने भी ऐसा ही भवितव्य समझ संतोष धारण किया ।
इधर कमठका जीव सिंह हुआ था और मुनिकी हत्याकरके मरकर पांचवे नरक गया। वहां पर सतरह सागर पर्यंत दुःख भोगके मरण किया लो तीन सागर पर्यंत पशुयोनिमें भ्रमण करते करते किसी जन्ममें कोई शुभकार्य हो जानेसे वह महिपाल नामके नगरमें महिपाल नामका राजा हुआ। वही वामादेवीका पिता वा पार्श्वनाथ भगवानका नाना था। उसकी जब पटरानी मर गई तो ‘उसके विरह दुःखसे दुःखित होकर राज्यपाट छोड़ कर उसने संन्यासी तपस्वीका भेष धारण कर लिया और वनमें पंचाग्नि योग साभन कर रहने लगा। शिरपर जटा बढ़ाकर मृगशाला ओढ़कर ऐसे भेषमें फिरता २ बनारसके जंगलमें आया। उस समय पार्श्वनाथ भगवान हाथी पर सवार होकर अनेक देवोंक साथ वनक्रीडा करने के लिए निकले थे सो वापिस पाते समय