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जैनवालवोधक
एक दिन वामादेवी चतुर्थ स्नान करके रात्रिमें सोई थी सो रात्रिके शेषमें उसने १६ स्वप्न देखे । प्रातः काल ही स्नानादि 'नित्य क्रिया करके सखियों सहित राजसभामें गई । राजाने यादर सन्मान करके अर्द्धासन दियो । रानीने अपने सोलह स्वप्ने कहकर फल सुनने की प्रार्थनाकी । राजाने स्वप्नोंका फल • कहा कि- तेरे गर्भ में तीर्थकर आये हैं और प्रत्येक स्वप्नके अनु- सार उसमें सब गुण होंगे। यह फल सुनने से रानीको वडा भारी • प्रानंद हुआ।
तदनंतर सौधर्म इंद्रने जान लिया कि तीर्थकर गर्भमें श्राये हैं इस लिये श्री हो आदि देवियोंको हुक्म दिया कि तुम सब विश्वसेन राजाके घर जाकर वामादेवी के गर्भका संशोधन करो और देवीकी तनमनसे सेवा करो क्योंकि उसके गर्भ से तेईसवें तीर्थंकर जन्म लेंगे। यह सुनकर देवियोंको बड़ा आनंद हुवा वे - इन्द्रकी आज्ञानुसार तत्काल ही बनारसमें जाकर माताकी नाना 'प्रकार से सेवा करने लगीं। वैशाख वदि २ विशाखा नक्षत्र की रात्रि मैं वामादेवीके गर्भ रहा था उस समय चारों ही प्रकारके देवोंके आसन कंपायमान हुये । वे सव ही देव विमानों में बैठ २ कर गर्भ 'कल्याणका उत्सव करनेके लिये बनारस नगरोंमें आये | और तीर्थकरके माता पिताको सिंहासन पर बैठाकर सुवर्ण कलशोंसे . उनका अभिषेक किया और गर्भस्थ तीर्थंकरको नमस्कार कर .के गीत नृत्य वादित्र वजाकर माता पिताकी भेट करी । और, रुचिक द्वीप निवासिनो देवियें व्याकर माताकी नित्यप्रति सेवा करने लगी। माता से नाना प्रकारके कठिन २ प्रश्न करती थी ।
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