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________________ १६८ जैनवालवोधक' इधर कमठका जीव अजगर हुआ था सो मरकर छठे नरक में गया था ।वहां घाईस सागरकी प्रायुपर्यंत दुःख भोगकर मरा सो इसी वनमें विहितकुरंग नामका भील हुआ । वह हाथमें तीर कमान लेकर जानवरोंको मारकर मांस खाता फिरता रहता था। फिरता २ इन वजूनाभि मुनिके पास पाया। उन्हें देखते ही पूर्व जन्मके वैरके कारण इसे क्रोध उत्पन्न हो पाया सो मुनिको बाण मारा । मुनिने धर्मध्यानमें रहकर प्राण छोड़े सो मध्यम प्रैवेयकमें जाकर अहमिंद्र हुये । वह भील मुनिकी हत्या करके फिर कुछ दिन वाद रौद्रध्यानसे मरकर सातवें नरकमें जाकर दुःसह दुख सहने लगा। प्रधर जंबूद्वीपके भरतखंडमें अजोध्यानगरीका वज्रवाह राजा राज्य करता था। वह इक्ष्वाकु वंशी जैनधमावलंबी था। उसकी रानी प्रभाकरीके गर्भ में उस अहमिंद्र देवने चयकर जन्म लिया जिसका नाम आनंदकुमार हुआ । वह बड़ा ही सुंदर था । युवावस्था प्राप्त होने पर अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह हुवा । प्रागेको वह बड़ा पराक्रमी होकर महामंडलिक राजा दुवा । ___ एक दिन राजा आनंद सिंहासन पर बैठा था सो स्वामिहित नामक मंत्रीने उससे प्रार्थना की कि-महाराज! यह वसंत ऋतु और नंदीश्वर पर्व है इन दिनोंमें सब कोई नंदीश्वर व्रत धारण करके जिनमंदिरों में पूजन विधानादि घड़ा महोत्सव करते हैं । जिन पूजन करनेसे बड़ा भारी पुण्य होता है अतएव' श्राप भी कीजिये । मंत्रीका ऐसा उपदेश सुनकर राजाने नगरमें बडाभारीउत्सव किया। स्वयं स्नान करके जिनमंदिर में जाकर
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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