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________________ चतुर्य भाग। १९७ इसके गर्भ में प्राते ही विजयाने एक रात्रिमें पांच स्वप्न देखें। उसके बाद गनीने प्रातःकालही राजाके पास जाकर स्वप्न कहे। गजाने मुनकर कक्षा कि तेरे उदरमें अच्युन स्वर्गका देव पुन SAR tोगा । मो या वजनाभि गामा पुत्र उत्पन्न हुआ। यह नीमट लागोमाता था।राजाने पुषका जन्मोत्सव पडे ठाट बाट के साशमिया । पना होनेपर पुत्र वजनाभिने समस्त विद्यार्य पनी 1 वायस्था प्रारमोने पर गिताने अनेक राजकन्याओंमे विवाह किया। फिर पिनाके रास्यका भार भी संभालने लगा। एक दिन याद यायुधशाला गया नौ यदा पर उसे चरनकी प्रानि । उसे ग्राम र उमने भए मंदका दिग्विजय करके चक्रपती पद प्राप्त किया । उसको चौदह रत्नोंकी प्रानि हुई। म प्रकार स मयका मुसा भोगता था नथापि उसका चित्त घोगति धर्मभ्यानमें ही रहता था। बाद चैत्यालयों में जा जिना . गुरु पूजा, मामायिक, और पर्व तिथिको प्रोपो. पयाम करना हुआ निन्य चार प्रकारका दान करता था । शीनयन भी मायधानीसे पालन करना था। एक दिन कर्म भयोगम नेमकर नामक मुनिमहाराज के दर्शन हुये, उसने मुनिमहागजम पास जाकर तीन प्रदक्षिणा देकर घरे विनय के साथ बैठार धर्मोपदेश सुना । यह उपदेश उसके निनमें पदम ठम गया जिसमे चायनीकी समस्त विभूति दावार उममे दिगंबर दाता ग्रहगा की । बाद यारह प्रकारका तपश्चरण करता मा अंगपूलांदि समस्त शास्त्रों में पारगामी
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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