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________________ चतुर्थ भाग। १६६ पान प्रभारी मनोज सामग्री लेकर भक्ति भावसे जिनंद्रभगवान को पूजा को। प्रजा फग्ने हरे राजाके मनमें मंदेश दुपा कि या प्रतिमा चनन , पूजा करने वालोंको क्या फन्न दे सकती न प्रकारका विचार होनेपर उम्म मंदिग्में दर्शनार्य प्राये हुये विपुनमानि नामके मुनि महाराजमे यह प्रश्न शिया तो मुनि मागउने का कि- गजन् ! प्रतिमाफी भक्ति भव्य जीवोंको निसमार पुगय न देनी है सो में फाहता -तू मुन । निमा अपने भायों को शुभ अशुम करनेके लिये एका निमित्त कारग, मिन प्रकार मफेद स्फटिकमणिके पोळे लाल पुष्प गणनेने फिटिम लाल दिपना प्रोग्याला पुष्प रमनेसे काला दिपने गमा उनी प्रकार या प्रतिमा जीवोंकी टिम जैसी पदनी ही भार बदल जाने हैं। मंदिग्जीमें भगवानकी गौतमग मूनि देखने में हम जीयो परिणाम धैराग्यस्य तोनाते मोरयता नृत्य या निप्र देरनेमेटम सीवरे, परिगाम गगमा जाने । कारण दो प्रकारे होते हैं। एक अंतरंग कारण, दमग कारग । मो तरंग परिणामोंका यारण या कारण होना है। अंतरंग परिणामोंके अनुमार ही फर्मबंध होने हैं। ऐसी ग्यम्या जिन परिणामोंने अधिक पुगय पंध माना उन परिणामक होने के लिये निमित्त कारण जिननिमा है। क्योंकि भगवानली चीनगग मुद्रा देखनेसे सर्वत्र प्रभुके गुगों या स्मरणाही प्राना है और गे ही भाव महान पुगयबंधको कारण, प्रेमा समझो। गगपरदिन निर्मल दर्पणको समान भगवान है। मुख नी नहि देने और दुख भी नहिं देते। इस
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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