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________________ ११२ "जैनवाल बांधक बहुत कुछ प्रार्थना की थी। परंतु राजाने मेरी बातमानी. नहीं . और तुझे राजाने दुख दिया। जो कुछ होनहार था सो हो गया श्रव तेरे विना मेरेले रहा नहीं जाता सो तू घर चल" ऐसा कहकर उसने भाईके चरणोंमें मस्तक नमा कर प्रणाम किया । परंतु उस दुष्टको इस क्रियासे उलटा क्रोध उत्पन्न हुआ । उस क्रोधके प्रवेशमें आकर वह शिला जो हाथमें थी उसे अपने भाईपर जोर पटक दी । वस उसीक्षण वह मर गया । कमठका ऐसी निर्दय कृत्य पासवाले तपस्वियोंने देखा तो उन्होंने उसको निकाल दिया। वहांसे निकालकर वह भीलोंमें जाकर मिल गया: और वहां चौरी लूट डकेती आदि नीच काम करने लगा ।. इधर राजा अरविंदने मरुभूति क्यों नहीं आया ? ऐसा एक अवधिज्ञानीसे पूछा तो उन्होंने मरुभूतिकी मृत्युका असली कारण कह सुनाया जिससे राजाको वडा दुःख हुआ और कहने लगा कि मैंने उससे बहुत कुछ कहा था कि तू उस दुष्टके पास मत जा परंतु उसने मेरा कहना नहि माना जिससे कि उसका ऐसा कुमरण हुआ क्या किया जाय होनहार, कभी : मिटती नही । 1 • इधर मरुभूति मरकर सल्लकी नामके वनमें वज्रघोष नामका : हाथी उत्पन्न हुआ और कमठकी स्त्री जो पोदनपुर में थी वह मरकर इसी बनमें हथिनी हुई सो इस हाथी के साथ संबंध हो. गया वह उस इथिनी से रमण करता हुआ नाना प्रकारकी चेष्टा और लोगों को कष्ट देता हुआ उसी धनमें फिरता रहा। . इधर राजा अरविंद एक दिन अपने महलपर बैठा हुआ था.
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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