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________________ चतुर्थ भाग। २३ उसने एकमंदिरके आकारका बादल देखा उस वादलके बने हुये मंदिरके बड़े ऊंचे २ शिखर थे । सो राजाने उसकी मुदरता देख कर उसी आकारका एक जिनमंदिर बनाने की इच्छा की और वह उसका नकशा खीचने के लिये कागज कलम लेकर तैयार हुआ ! कि इतने में ही उस बादलका अपूर्व प्राकार विघट गया, उसे देखकर राजाके मनमें यह बात जम गई कि यह समस्त जगत इसी प्रकार क्षयामरमें नाश होने वाला है। शरीर, धन, दौलत राजसम्पत्ति इसी प्रकार एक दिन नष्ट हो जायगी। यह जीव मोहके वशीभूत हो नाशवान वस्तुओं को शाश्वत मानता है सो बड़ी भूल है इसप्रकार विचार करनेसे राजाको वैराग हो आया • उसी वक्त अपने पुत्रको राज्यतिलक देकर गुरुके पास जाकर दिगंबरी दीक्षा लेकर यथायोग्य चारित्र पालने लगा। . एक समय संघके साथ अरविंद मुनि भी सम्मेद शिखरजी. की.यात्राकेलिये ईयर्यापथ सोधन कर जाते थे । सो सब संघ उसी सल्लकी वनमें श्राकर ठहरा । मुनिने संध्या समयमें प्रतिमा योग धारण किया था, उसी वनमें वह मरुभूमिका जीव बज्रघोष नामका हाथी था सो बड़े क्रोधके साथ उस संघमें घुस नाना .प्रकारके उपद्रव करने लगा। हाथीके सामने जो पड़ा उसका काम तमाम हो गया। उसने कितने ही घोड़े बैल जानसे मार डाले। इस प्रकार सबको मारता हुआ. अरविंद मुनिको भी • मारनेऋलिये पास पाया परंतु मुनि मेक समान अचत ध्यानस्य . .खड़े रहे । उनकी छातीपर श्रीवास लक्षण था । म हाथी ने देखा तो देखते ही उसे जातिस्सरण हो पाया और उसका
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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