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जैनवालवोधकउस पर बड़ा भारी प्रेम था। एक समय राजा अरविंद मित्र सहित अपनी सेना नेकर वज्रवीर्य राजापर चढाई करके लड़ाई करने गया। उनके पोछे कमठ ही राज्यका काम करने लगा सो अपने को ही राजा मानकर जीचाहा सो पाचरण करने लगा।
एक दिन अपने छोटे भाई मरुभूतिकी स्त्रीको वस्त्राभूषण धारण किये हुये देखा तो उसपर आसक्त हो गया। तत्पश्चात् बगीचे में जाकर लतागृहमें पड़ा हुआ काम विकारसे तड़फने लगा उस समय उसके मित्र कलहंसने इस ' दुःखका कारण पूछा तो कमठने लजा छोड़कर मनको सव हालत कह सुनाई । सुनकर कलहंसने उसको बहुत कुछ उपदेश दिया कि 'परस्त्री और जिसमें भी फिर छोटे भाई की वह वेटी समान है उसके साथ ऐसा काम करनेमें बड़ा भारी पाप है। निंदा है, इत्यादि बहुत कुछ समझाया परंतु कमठको कभी उपदेश वाक्य 'न रुचा। उसने कहा कि यदि मुझे वसुंधरा नहिं मिलेंगी तो मैं अवश्य मर जाऊंगा। जब इस प्रकार कमठका हठ देखा तो कलहंसने जाकर वसुंधरा से कहा कि तेरा जेठ बहुत दुःखी होकर वागमें पड़ा है सो टू उनकी खवर ले। पह सुनते ही 'वह घबड़ाकर वागमें गई और कमठने कपट वचन कहकर 'भीतर बुला लिया और उसके साथ काम विकारकी बातें करके उसका जबरदस्ती शील भंग किया।
इधर राजा अरविंद शत्रुको जीतकर नगरमें पाया और
घर शा . कमठके ये सव दुराचरण लोगोंने कहे तो राजाने मरुभूतिको बुलाकर पूछा कि इस दुष्टको क्या दंड देना चाहिये । मरुभूति
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