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________________ चतुर्थ भाग ! १८६ कहते हैं। यहां शक्ति शब्दसे कर्मोंको फल देनेकी शक्ति सम झाना । १३२ | बिना फल दिये आत्मासे कर्मके संबंध छूटने की उद्याभावी क्षय कहते हैं 4 १३३ | कर्मोकी स्थिति बढ़ जानेको उत्कर्पण कहते हैं और घट जानेको अपकर्षण कहते हैं । १३४ | किसी कर्मके सजातीय एक भेदसे दूसरे भेदरूप हो. जानेको संक्रमण कहते हैं। .. १३५ । एक समय में जितने कर्मपरमाणु और नाकर्मपरमाणु. बंध, उन सबको समयप्रवद्ध कहते हैं । 2 -*-* . ४०. श्री पार्श्वनाथ भगवान । ~~*~~*~~~ भरतक्षेत्र आर्यखंडमें पोदनपुरनामका एकनगर था । उसमें अरविंद नामका राजा था। उसके विश्वभूति नामका ब्राह्मण मंत्री था। उसमंत्रीकी स्त्री. अनुंधरानामकी घडी सुंदर व शील ती थी। उसके दो पुत्र हुये । वड़ेका नाम कमठ छोटेका नाम, मरुभूति । कमठ कपटी, मरुभूति सरल प्रकृति था । कमठकी स्त्रीका नाम बरुणा और मरुभूतिकी स्त्रीका नाम वसुंधरा था । एक दिन विश्वभूति मंत्री को अपने शिरमें सफेद केश देखने से वैराग्य उत्पन्न हो गया | तब मरुभूतिको मंत्री पद देकर मुनिदीक्षा . लेली! मरुभूति बडी नीतिके साथ काम करता इसलिये राजाका :
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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