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जनवालवोधक१२२ । स्थितिको पूरी करके कर्मके फल देनेको उदय
- १२३ । स्थिति विना पूरी किये ही कर्मके फल देनेको
उदीर्णा कहते हैं। . . : १२४ । द्रव्य क्षेत्र काल भावके निमित्तसे कर्मकी शक्तिका 'अनुभूत (प्रगट न) होना सो उपशम है ।उपशम दो प्रकारका
है। एक अंतःकरणरूप उपशंम, दूसरा सदवायारूप उपशम । · · ११५ । आगामी कालमें उदय श्राने योग्य कर्मपरमाणुओं. को प्रागे पीछे उदय पानेयोग्य करनेको अंत:करणरूप उपशम कहते हैं।
१२६ । वर्तमान समयको छोड़कर, आगामीकालमें उदय श्रानेवाले कर्मोंके सत्तामें रहनेको सदवस्थारूप उपशम कहते हैं।
१२७ । कर्मकी अत्यंतिक निवृत्तिको क्षय कहते है।
१२८ । वर्तमान निषेकमें सर्वघाति स्पर्द्धकोंका उदयाभावी तय तथा देशघाती स्पर्द्धकोंका उदय और आगामी कालमें उदय
आनेवाले निषेकोंका सदवस्थारूप उपशम ऐसी कर्मकी अवस्था 'को क्षयोपशम कहते हैं।
१२९ । एक समयमें कर्मके जितने परमाणु उदयमें आवें उन सबके समूहको निषेक कहते हैं।
१३० । वर्गणाओंके समूहको स्पर्द्धक कहते हैं। वर्गोंक समूह को वर्गणा कहते है-समान अविभाग प्रतिच्छेदोंके धारकप्रत्येक 'कर्मपरमाणुको वर्ग कहते हैं। . .
१३१ । शक्तिके अविभागी अंशको अविभाग प्रतिच्छेद