SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८८ जनवालवोधक१२२ । स्थितिको पूरी करके कर्मके फल देनेको उदय - १२३ । स्थिति विना पूरी किये ही कर्मके फल देनेको उदीर्णा कहते हैं। . . : १२४ । द्रव्य क्षेत्र काल भावके निमित्तसे कर्मकी शक्तिका 'अनुभूत (प्रगट न) होना सो उपशम है ।उपशम दो प्रकारका है। एक अंतःकरणरूप उपशंम, दूसरा सदवायारूप उपशम । · · ११५ । आगामी कालमें उदय श्राने योग्य कर्मपरमाणुओं. को प्रागे पीछे उदय पानेयोग्य करनेको अंत:करणरूप उपशम कहते हैं। १२६ । वर्तमान समयको छोड़कर, आगामीकालमें उदय श्रानेवाले कर्मोंके सत्तामें रहनेको सदवस्थारूप उपशम कहते हैं। १२७ । कर्मकी अत्यंतिक निवृत्तिको क्षय कहते है। १२८ । वर्तमान निषेकमें सर्वघाति स्पर्द्धकोंका उदयाभावी तय तथा देशघाती स्पर्द्धकोंका उदय और आगामी कालमें उदय आनेवाले निषेकोंका सदवस्थारूप उपशम ऐसी कर्मकी अवस्था 'को क्षयोपशम कहते हैं। १२९ । एक समयमें कर्मके जितने परमाणु उदयमें आवें उन सबके समूहको निषेक कहते हैं। १३० । वर्गणाओंके समूहको स्पर्द्धक कहते हैं। वर्गोंक समूह को वर्गणा कहते है-समान अविभाग प्रतिच्छेदोंके धारकप्रत्येक 'कर्मपरमाणुको वर्ग कहते हैं। . . १३१ । शक्तिके अविभागी अंशको अविभाग प्रतिच्छेद
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy