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________________ १८५ ___चतुर्थ भाग रहती है किन्तु नेमिनाथको ऐसी इच्छा कदापि नहीं है। वे इस संसारसे ही उदासीन हैं । वैराग्यका कोई कारण पाते ही वे दीक्षा ग्रहण करके मोक्षका राज्य करेंगे। तव श्रीकृष्णने अपनी स्त्रियोंको कहा कि.-तुम नेमिकुमारको जलक्रीड़ामें लेजाकर इनसे विवाहकी स्वीकारता करायो। तर सत्यभामादि कृष्णको अठारह हजार रानियोंने नेमिनाथसे विवाह करने की स्वीकारता कराई । तव सोरठ देश जूनागढ़के भोजकवंशी राजा उग्रसेनकी पुत्री राजमतीसे नेमिनाथका विवाह करना निश्चय किया। श्रीकृष्णने छलसे जूनागढ़में यरातके रास्ते पर भेड़ बकरे आदि हजारों पशु एकत्र करके एक घेरेमें अटका दिये। और नेमिनाथके रथके सारथीको समझा दिया कि, जब नेमिनाथ पूछे कि-ये पशु किसलिये इकट्ठे किये हैं, तो तू "वरात अनेक बराती मांसाहारी भी पाये हैं उनके लिये इन सबको वध करेंगे एसा कह देना। जय पशुओंके निकट वरात आई और वरातको धूमसे पशुगण भयभीत होकर चिल्लाये: तो नेमिनाथने सारथीसे पूछा कि-ये पशु किसलिये एकत्र किये गये हैं ? तो सारथोने कृष्णकी उपर्युक्त आज्ञानुसार ही कह दिया । उसको सुनते ही नेमिनाथने कहा कि "अहो ! इस मेरे विवाहके लिये इतनामहापाप ? धिक्कार है इस राज्यविभव और सांसारिक भोगोंको" इत्यादि कहकर वे संसार देह भोगोंसे विरक्त हो गये । त्वरित ही रथको थांभकर
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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