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जैनवालवाचकपशुओंको कैदसे छुटाया और गिरनार पर्वत पर जाकर दीक्षा धारण कर वालपनमें ही मुनि हो गये।
इधर राजमती भी अन्य वरकी इच्छा छोड़कर नेमिनाथके शरणमें पहुंची और प्रार्थना को कि-श्राप दीक्षा छोड़कर चलिये, महलोंमें ही साधन कीजिये । परन्तु वे एकके दोन हुए। लाचार राजमती भी दीक्षा धारण करके आर्यिका (तपस्विनी । हो गई और तपस्याके प्रभावसे स्त्रीलिंगको छेदकर सोलहवें स्वर्ग में जाकर उत्तम देव हुई।
उधरं श्रीकृष्णादि अपना निष्कंटक राज्य करने लगे। नेमिनाथ भगवान् धातिकर्मों को काटकर केवलज्ञान प्राप्त करके अपने उपदेशोंसे असंख्य जीवोंको संसारके दुःखोंसे छुटाकर अन्त में सिद्ध पदको प्राप्त हुए।
___३९. कर्मसिद्धांत (४) ११२ । कर्मोंके आत्माके साथ रहने की .मियादके पडनेको स्थितिबंध कहते हैं।
११३ । शानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, अंतराय इन चारों कर्मोंकी उत्कृष्टस्थिति तीस तीस कोडाकोड़ी सागर की है और मोहनीयकर्मकी सत्तर कोडा कोड़ी सागर है । नामकर्म तथा गोत्र कर्मकी वीस २ कोडा कोड़ी सागर है और आयुकर्मकी स्थिति तेतीस सागरही है।
११४ । जघन्यस्थिति वेदनीय कर्मकी १२ मुहूर्त, नाम तथा