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________________ चतुर्थ भाग । १७७ कुछ दिन बाद फिर वरुणराजाने रावण से युद्ध ठान दिया। अबकी बार भी पवनंजय आदि अधीनस्य राजाओंको युद्धार्थ बुलायां सो पवनंजय और प्रतिसूर्यने हनुमानको राज्य देकर जाना चाहा परंतु हनुमानने कहा कि मेरे रहते आप क्यों जाने लगे ? पिता और प्रतिसूर्यने बहुत कुछ समझाया कि तू चालक है, परंतु उसने नहि माना और स्वयं युद्धमें गया। रावणने इसका बहुत सत्कार किया। युद्ध में श्रद्भुत वीरता देख शत्रुको बंदी किया | युद्ध समाप्त होनेके पश्चात् वरुणने अपनी पुत्री और रावणने अपनी बहिन चंद्रनखाकी पुत्री अनंगकुसुमाके साथ हनुमानका विवाह किया और संपूर्ण कुंडलपुरका राज्य देकर राज्या. भिषेक कराया और वहीं पर हनुमान सुखसे रहने लगे। • इसके पश्चात् किष्कंधपुरका राजा सुग्रीव पद्मावती नामा अपनी पुत्रीको योवनवती देख चिंता करने लगा । राजाने कन्या. को श्रनेक राजकुमारोंके चित्र पट दिखाये परंतु सबको तुच्छ दृष्टि से देखकर हनुमानके चित्रपर वह आशक हो गई । पद्मावतीका चित्र हनुमानके पास भेजा तौ उसके एकहजार विवाह दुसरे होने पर भी वह ऐसा आशत हो गया कि वह उसे देखने किंवापुर गया । सुग्रीवने हनुमान कुमारका आना सुन वड़े यादर सत्कारसे नगरमें प्रवेश कराया । कन्या भी हनुमानको देख अति हर्षित व चकित हो गई। फिर बड़े आनंद और उत्साहके S साथ विवाह हो गया । धनुमानं प्रियासहित अपने नगर आये । माता पिता अपने पुत्रको महा लक्ष्मीवान देख सुखसागर में गोता खाने लगे । १२ "
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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