________________
चतुर्थ भाग ।
१७९
को देखा तो बालक एक सिलावर श्रानन्दसे खेल रहा है शिला के टुकड़े २ हो गये हैं। यह देख प्रतिसूर्यने जाना कि यह चालक चर्मशरीरी वज्रवृषभनाराच संहननका धारी बड़ा प्रतापी है वास्तव में वह था भी चर्मशरीरी कामदेव । वालकको लेकर - हनुरुह द्वीप पहुंचे । वहां पहुंच कर जन्मोत्सव किया और बालकका नाम श्रीशैल रक्खा गया । इनुरुह द्वीपमें आनेके - कारण दूसरा नाम हनुमान प्रसिद्ध हुआ ।
इधर पवनंजयने वरुणको जीतकर रावणका प्राशाकारी वना दिया और घर आने पर सुना कि अंजनाको दोष लगा कर निकाल दिया सो सुनकर बड़ा दुःखी हुआ फिर सर्वत्र खोज हुई । पवनंजय और प्रहस्त सुसरालमें गये । वहांसे भी निकाल दी गई सुनकर पवनंजयने वियोगी योगीका रूप धारण किया । और अम्बरगोचर हस्ती पर चढ़ कर जङ्गल २ खोजता फिरने • लगा कुछ दिन बाद हाथीको भी कुमारने छोड़ कर स्वतंत्रता दे - दी परंतु हाथीने कुमारको नहिं छोड़ा साथ २ फिरने लगा । और मित्र के साथ ये समाचार और सब सामान घर भेज दिया । प्रहस्तने राजा प्रह्लादको सब हाल सुनाया । सुनकर बड़े दुःखित हुये । केतुमती माता भी पुत्रके दुःखमे रुदन करने लगी । पिताने कुमारको खोजने के लिये दूत भेजे। स्वयं आकाशमार्गसे खोजने को गये। एक दूतराजा प्रतिसूर्य के पास भी भेजा कि कुमार जनाको खोजने लिये पागल से होकर कहींको चले गये हैं । यह समाचार अंजनाने सुना तो वह बहुत हो दुखित हो विलाप करने लगी उसके विलापसे राजा प्रतिसूर्य बड़ा दुःखित