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जैनवाल बोधक
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का वृत्तांत पूछा । मुनिने प्रागामी सब वृत्तांत कहकर धीरज चंधाया और प्राकाशमार्गसे चले गये। वे दोनों श्रवलायें उसी : गुफामें रहने लगीं जो कि - वंबई के पास नाशिक नगरसे १६ मोलपर अंजनेरी पहाड़के ऊपर अंजना गुफाके नामसे अवतक मौजूद है एक रात्रिको वहां पर सिंह आया । वसंतमाला शस्त्रसहित थी सो जनाको रक्षाका प्रबंध किया परंतु दोनों ही भय 'भीत थीं । यह देखकर वहांपर रहनेवाले यक्षने यक्षणीकी प्रार्थनासे अष्टापदका रूप धारण करके सिंहको भगा दिया। उस गुफा में दोनों स्त्रिय - मुनिसुव्रत भगवान की मूर्ति स्थापन करके नित्यपूजा बन्दना करने लगों । गुफामें हो हनुमानजीका जम्म 'हुआ । चालक के जन्म होने पर उनकी प्रभासे अंधेरी गुफामें उजाला हो गया । वालकको शुभ लक्षणवाला देखकर अंजना को परम संतोष हुआ | हनुमानका जन्म चैत्र सुदी अष्टमीको अर्द्ध रात्रिके समय हुआ था ।
दुसरे दिन श्राकाश मागसे एक विमान जाता था सो इस - गुफा पर आकर अटक गया और उसे देख इन्हें भय हुवा तौ ये रोने लगों । रोना सुन विमानको नीचे उतार कर उसमेंसे हनुरुह द्वीपके राजा प्रतिसूर्य निकल कर गुफा के दरवाजे पर आये । जनाने अपना परिचय दिया । प्रतिसूर्यने अपना परिचय देकर कहा कि तू तो मेरी भानजी है । चल, घर पर चल कर सुखसे रहना। ऐसा कह कर विमानमें विठाकर अपने नगरको 'चल दिया । बालक जनाके हाथोंमें खेल रहा था सो उछल नीचे : पहाड़ पर गिर पड़ा हाहाकार होने लगा विमान उतार कर बालक
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