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चतुर्थ भाग।
.१७३ स्वीकार किया। युद्ध में जानेके समय अंजना पतिदर्शनार्थ द्वार पर पाई सो पवनंजय देखकर बड़ा क्रोधित हुआ। पवनंजयने. पहला डेरा मानसरोवर डाला। वहां पर रात्रिमें चकवेसे चक वीका वियोग होनेसे चकवी बहुत ही दुःखित हो तडफड़ाती थी सो उसे देखकर पवनंजयको अंजनाके दुःखका भान हुआ।
और अब वे एकवार अंजनासे मिलकर जाने के लिये विकल हो गये । घरसे रवाना हो आये अव जावें कैले ? फिर सलाह करके प्रहस्तमित्र सहित विमानमें बैठ कर गुप्त भावसे जाना ठहराया सो मुद्गर नामके सेनापतिको सेनाका भार देकर रात्रिमें चल दिये। अंजनाके महलमें रात्रि भर रहे । उस दिन अंजना ऋतुस्नाता थी। सो उसने गर्भ रहनेकी आशंका प्रगट की और माता पिताको अपने पानेकी खबर करके जानेकी प्रार्थना की परंतु पवनंजय दो चिन्ह देकर चले गये और शीघ्र ही हम लोट पावेंगे ऐसा आश्वासन दे गये । इधर अंजनाके गर्भके चिन्ह प्रगट हो गये । पतिकी दी हुई कुंडल और मुद्रिका दिखाई तो भी सासने न माना और पतिसे कहकर अंजनाको पिताके नगरके निकट वनमें छुड़वा दिया। ___ अंजना पिताके घर गई परंतु उसको ऐसी अवस्था देखकर पिताने व्यभिचारिणी समझकर अपने नगरसे निकलवा दिया। तब वसंतमाला (अपनी सखी) सहित वनमें चली गई । वह वन बड़ा भयानक था। वहां पर्वतके ऊपर एक गुफा थी उसमें रहने .का विचार कर वहां गई तो उस गुफामें एक चारण ऋद्धिके धारक मुनिके दर्शन हुये। दोनोंने चंदना करके अंजना के भाग्य