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चतुर्थ भाग.!
१६१ तत्पश्चात् राम लक्ष्मणने बहुत दिनोंतक राज्यसुख भोगां। एक दिन स्वर्गके देवोंमें राम लक्ष्मणके स्नेहको प्रशंसा होने लगी तौ एक देवने पाकर रामचंद्रको मायासे वेहोश करके लक्ष्मणको रामके मरनेकी खवर सुनाई । लक्ष्मणं सुनते ही हाय कहकर जमीनपर गिर पड़ा और प्राण पखेरू उड़ गये । महलमें शोक का गया । रामचंद्र पागल हो गये। लक्ष्मणको लाशको जीवित समझ छह महीने तक लिये लिये फिरे । फिर देवोंने समझाकर शवदहन करवाया। फिर संसारले विरक्त हो श्रीरामने विभी. षण, शत्रुघ्न, अनंगलवण, सुग्रीव आदि सोलह हजार राजावोंके साथ दीक्षा ली । सवने अपने २ पुत्रोंको राज्य दिया और श्रीराम कोटिशिलापरसे मुक्ति गये । लवणांकुश भी मोक्षं गये!
. ३५. कर्मसिद्धांत।
. . -- --- • ८६ | जिस कर्मके उदयसे संतानके क्रमसे चले पाये जीवके आचरणरूप उच्च नीच गोत्रमें जन्म हो उसे गोत्रकर्म कहते हैं। गोत्रकर्म दो प्रकारका है- एक उच्च गोत्र, दूसरानीच गोत्र । ___801 जिस कर्मके उदयसे उच्च गोत्रमें जन्म हो उसे उच्च गोत्र कर्म कहते है। ____ जिस कर्मके उदयसे नीच गोत्र में जन्म हो उसे नीचगोत्रकर्म कहते हैं। .. : .
१२ । जो दान लाभ, भोग, उपभोग और वीर्यमें विघ्न डालें