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चतुर्थ भाग ।
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१६५ दोनों तुमारे पूज्य गुरुजन हैं । कुमारोंने कहा-तब तौ हम जरूर उनसे युद्ध करेंगे। उन्होंने तुझ निरपराधको वनमें छोडकर इतना दुःख दिया सो जरूर बदला लेंगे। सीताने कहा- बेटा ! तुम ऐसा मत करो, उनसे जाकर मिलो प्रणाम करो । कुमारोंने कहा- हम वीर हैं इसप्रकार नहिं मिलेंगे। युद्धमें ही उनसे मिलेंगे । नारदजीने कहा- कोई हानि नहीं होने दो, बाप बेटोंमें युद्ध मैं बीचमें हूं । हानि समझते हो परिचय करा दूंगा फिर क्या था युद्धको चल दिये। वहां पहुंचते ही युद्ध होने लगा । राम लक्ष्मणाने तो कुमारोंको शत्रु समझकर ही वाण चलाये परंतु कुमारोंने पिता और चाचा समझ कर बचा २ कर वाण चलाये तौ भी राम लक्ष्मण घबड़ाने लगे और मनमें संदेह करने लगे कि - सायद ये ही बलभद्र नारायण न हों । तत्र लाचार होकर कुमारों पर सुदर्शन चक्र चलांया परंतु सुदर्शन चक्र विना घात किये वापिस आगया । सीता और नारदजी यह सब तमासा विमानमें वैठे देख रहे थे । सो नारदजी तुरंत बीचमें कूद पड़े । लक्ष्मणाने प्रणामपूर्वक कहा कि महाराज ! आज तक मेरा वाण कभी खाली नहिं गया, आज क्या हो गया। सबके सब वार खाली जा रहे हैं ! -नारदजीने कहा कि आप किससे लड़ रहे हैं १ ये दोनों सीता के पुत्र मदनांकुश और अनंगलवण हैं ? वस ! कुमार भी तत्काल शस्त्र फेंक रथ से उतर कर राम लक्ष्मण के चरणोंमें गिर पड़े। उन्होंने उठाकर छातीसे लगाकर प्रभूतपूर्व सुखानुभव किया । और सबके बडा आनंद हो गया । सोता देखकर बडी प्रसन्न हुई और बज्रजधके साथ तुरंत ही लौट गई।
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