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जैनवालबोधक
कहा था कि जो मनुष्य कोटिशिला को उठावैगा उसीके द्वारा तेरी मृत्यु होगी। तब लक्ष्मणने कहा कि चलो वह कोटिशिला कहां हैं, सो बतायो । तव सवजने विमानमें बैठकर कोटि शिलाके पास गये । सवने नमस्कार किया, चंदन से पूजा करके तीन प्रदक्षिणा दीं । तत्पश्चात् लक्ष्मणने कमर बांधकर उस शिलापर से मुक्ति प्राप्त भये अनंत सिद्धों का स्मरण स्तुति करके घुटनों तक उस शिलाको उठाया। आकाशसे देवोंने जय जय शब्द किये और पुष्प वरसाये | तब सबको निश्चय हो गया कि --- रावणकी मृत्यु इन्होके हाथसे होगी यही आठवें नारायण हैं । वहांसे चलकर सम्मेद शिखर और कैलासकी यात्रा करके सामको किपकिंधा पुरमें सब प्रा पहुंचे ।
तत्पश्चात् सुग्रीवादिने फिर भी सलाहको कि-रावण एक बड़ा बलवान राजा है उससे सबका युद्ध करना ठीक नहीं । इसकारण एक चतुर द्रुत विभीषण के पास भेजा जावे विभीषण धर्मात्मा चतुर है सो रावणको समझाकर सीताको वापिस भिजवा देगा तव महोदधि नामा विद्याधरने कहा कि यह सलाह तौ ठोक है। परंतु रावणके मंत्रियोंने लंकाके चारोओर मायामयी यंत्र रच दिया है, सो आकाश मार्गले वा स्थल मार्ग से कोई भी मनुष्य नहिं जा सक्ता । हां ! पवनंजयके पुत्र हनुमान याचना करके भेजे जावै तौ वह सव यंत्रों को तोड़ ताड़कर भी जा सकते हैं तथा रावण के परम मित्र हैं सो सीधे भी जाकर रावणको समझा सकते हैं । तब श्रीशैल (हनुमान) के पास दूत भेजा । सुग्रीव का दुःख राम लक्ष्मणके द्वारा नष्ट हो जाने, पाताल लेकाके