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चतुर्थ भाग। । अधिपतिको मारने व विराधितको पाताल लंका देने आदिके । सव समाचार कहे तो हनुमान अपने श्वसुर सुग्रीवकी आज्ञानुi सार सेनासहित तत्काल किपकिंधाको चल दिये और सलाह । कर लंकाकी तरफ भी रवाना हो गये।
. हनुमान लंकामें सुखसे प्रवेश करके प्रथम ही विभीषणके • पास गया और रावणकी अनीति कहकर उससे विरत करनेके लिये कहा तो विभीषणने कहा कि-माई ! मैंने बहुत वार रावणको समझाया परंतु वह मानता नहीं और जिस दिनसे मैंने उसको इस अन्यायसे विरक्त होनेको प्रार्थना की है तबसे मुझसे वार्तालाप ही नहि करता। तुमारे कहनेसे फिर भी एकबार जोर देकर समझाऊंगा परंतु मुझे भरोसा नहीं कि वह अपना इठ छोड़ेगा । आज सीताको अन्न जल छुये ११ दिन हो गये तौभी उसे दयानहिं पाती । यह सुनते ही श्रीशैल तत्काल ही प्रमद उद्यानमें पहुंचा। उसकी शोभा देखता र सीताके पास पहुंचा। देखा तो अश्रुपातसे नेत्र भरे हैं जमीनको कुचरती हुई अत्यंत कृश शरीर सीता चिंतारूपी समुद्र में डूब रही है तो भी सुं. दरतामें इसकी समान कोई भी नहीं है । इसे शीघ्र ही श्रीरामसे मिलाऊं तो मेरा जन्म सफल है। फिर धीरे धीरे आगे जाकर सीताके सन्मुख रामचंद्रकी दी हुई मुद्रिका डाली। मुद्रिकाको देखते ही रोमांच हो पाया । कुछ मुख हर्पित हो गया। सीताको कुछ प्रसन्न हुई देख पास बैठी हुई दुतीने तुरंत ही सीता की प्रसन्नताका समाचार पहुंचाया, उसे वहुतसा इनाम दिया और मंदोदरीको समस्त रानियों सहित सीताको समझानेके