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चतुर्थ भाग ।
१५१ दुःखी हूं, मेरा राज्य स्त्री सब ही दूसरा लिये लेता है, मुझे राज्य स्त्री दिला दें तो मैं आपकी सीताका सात दिनमें पता लगा दूंगा और रावणका पक्ष छोड़ आपका सेवक हो जाऊंगा। मेरे साथी समस्त वानरवंशी रावणका पक्ष छोड़ आपके श्राज्ञाकारी हो जायेंगे । तव रामने साहसगति से युद्ध प्रारंभ किया परंतु. रामचंद्रको पुरायाधिकारी समझ साहसगतिकी विद्या भाग गई और साहसगतिका असली रूप प्रगट हो गया। रामचन्द्रने उसको तुरत ही यमालय पहुंचा दिया उसकी सेना सब तितर वितर हो गई । अब क्या था - सुग्रीव राज्य स्त्री पाकर सुखी हो गया और नल नील आदि अनेक वानरवंशी रामको पक्षमें हो गये । फिर रत्नजटीके द्वारा सीताका पता भी लग गया कि उसे रावण हरकर ले गया है । तब सीता के भाई भामंडल को भी यह खबर देकर बुलाया और सब जने मिलकर किषकिधामें सलाह करने लगे कि क्या करना चाहिये ?
अनेक विद्याधरोंने लक्ष्मणको समझाया कि- रावण बड़ा भारी बलवान है, उसके साथ युद्ध करना ठीक नहीं । सो प्राप यहाँ रहिये हम आपकी सेवा करेंगे। सीताकी प्राशा छोड़ दें । हम विद्याधरोंकी सैकड़ों कन्यायें व्याह देंगे | तब रामने कहा कि और स्त्रिये यदि इन्द्राणो की समान हों तो भी हमारे किस कामकी ? हमारे सीता सिवाय दूसरी स्त्रियोंकी बांका नहीं है । जो हम पर तुम लोगों की प्रीति है तो सीताको हमें शीघ्र ही दिखाओ । जांबूनद आदि विद्याधरोंने कहा कि-रावणने एकवार अनंतवीर्य मुनिसे अपने मृत्युका कारण पूछा था सो सुनिमहाराजने
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