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जनवालबोधक
चालेको वहीं खोजने लगी तो राम लक्ष्मण दोनों भाईयोंको
'देखा तब पुत्र शोकको भूलकर उनपर प्रासक्त हो गई और अपनेको कुमारी कन्या बताकर पाणिग्रहणकी इच्छा प्रगट की परंतु ये दोनों भाई इसकी बातोंमें नहीं प्राये । जाचार खरदूषण के पास जाकर कहा कि - राम लक्ष्मणने पुत्रको मारकर सूर्यहास्य खड्ग ले लिया है और मुझे वेइज्जत करनेकी ठानी थी, सो मैं बचकर चली आई हूं। यह सुनकर खरदूषणाने युद्धको तैयारी की और अपने शाले रावणको सहायतार्थ यानेकी प्रार्थना की ।
इस खरदूषण के युद्ध में राम जाने लगे यह देख लक्ष्मणने कहा- प्राप यहीं बैठिये, सीताकी रक्षा कीजिये, में हो उसे जीतकर आता हूं, यदि जरूरत पड़ेगी तो मैं सिंहनादकर संकेत करूंगा सो श्राप आ जाना। उधर रावण खरदूपणकी सहायताके लिये पुष्पक विमानमें बैठकर पा रहा था सो रास्तेमें सीताको देखकर मुग्ध हो गया, लड़ाई में जाना भूलकर सोताको प्राप्त करनेकी फिकर पड़ गई। उसने अपनी अवलोकिनी विद्यासे जान लिया कि लक्ष्मण सिंहनाद करेगा तौ राम उसकी सहायतार्थ चल देगा सो यह संकेत जानकर रावणने ही दूर जाकर नकली सिंहनाद में राम राम शब्द किया । राम भाईपर आपत्ति जानकर सीताको पुष्पवाटिका में छिपाकर जटायुको रक्षाका भार देकर चल दिया । रावण, मोका पाकर सीताको विमानमें रख चला गया। जटायु ने रावण के साथ युद्ध किया परंतु थप्पडको खाकर अधमरा हो गिर पड़ा. उधर समको लक्ष्मणने देखकर कहा कि आप क्यों
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