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चतुर्थ भाग। सुगुप्ति नामके दो चारण ऋद्धिधारी मुनि मासोपत्रासके पारने की इच्छाले आकाशमें पा रहे थे सो इन्होंने नवधा भक्तिपूर्वक पड़गाहा और आहार दान किया । उसी समय पासके वृत्तपर बैठे हुये गृध्र पक्षीको जातिस्मरण हो गया सो वह मुनियोंके चरणों में श्रा पड़ा । उस पक्षीका वर्ण भी सुवर्ण और वैड्डूय मणिकासा हो गया। मुनियोंने आहार ग्रहण करनेके बाद उस पक्षीको उपदेश देकर श्रावकके त्रत ग्रहण कराये और राम लक्ष्मणके साथ रहनेकी प्राज्ञा दी । रामने इसका नाम जटायु रक्खा। यहां पर रामने एक रथ बनाया और तीनों इसीपर यात्रा करने लगे। ....... . - वहलि.चलकर क्रौंचरवा नदी पार करके दंडक गिरीकेपास जाकर ठहरे । इन दिनों मुख्य आहार फलादिकका ही था। यहां पर एक नगर वसानेका विचार था परंतु वर्षाऋतुके बाद बनाने की इच्छासे वहींपर रहने लगे। ___ एक दिन लक्ष्मण वनमें टहलते समय एक तरफसे सुगंध
आ रही थी उस तरफ गया तौ वांसके वोडेपर सूर्यहास्यखड्ग दिखाई दिया । लक्ष्मणने उसको ग्रहण कर लिया और उसकी धारकी परीक्षार्थ बांसके बीड़ेपर चलाया तो वासका वीड़ा कट गया उसी चीड़ेमें खरदूषणका पुत्र ( रावणका भाणजा ) शंबूक उसी सूर्यहास्य खड्गकी प्राप्तिके लिये तपस्या कर रहा था, सो उस वीड़े के साथ उसका माथा भी कट गया । शंबूककी माता चंद्रनखा प्रतिदिन पुनको भोजन देनेके लिये आया करती थी, सो पुत्रका शिर कटा देख बड़ी शोकित हुई और उसके मारने