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जैनवालबोधक
है इसकारण रामचंद्र, भरतको निश्चित करनेके लिये युद्ध: न करके युक्तिसे वशमें करनेका विचारकर नृत्यकारिणोका वेश बनाकर गये और प्रतिवीर्यको बांधकर ले आये। सीताने उसको छोड़ देने को कहा तौ छोड़ दिया परंतु संसारसे उदास हो अपने पुत्र विजयरथको राज्य देकर उसने जिनदीक्षा धारण करली | विजयरथने अपनी परम सुन्दरी रत्नमालाका लक्ष्मण के साथ और भरतके साथ अपनी दूसरी वहन विजय सुन्दरीका विवाह करके भरतकी श्राज्ञा मानना स्वीकार किया । भरतको मालूम न होने पाया कि राम लक्ष्मणाने हो नृत्यकारिणी वनकर यह हमारा उपकार किया। तत्पश्चात् लक्ष्मणने वनमालाको समझा दिया और यहांसे तीनों जने विना कहे ही चल दिये !
चलते २ खेमांजलि नगर के पास आकर ठहरे ! भोजन बनाकर लक्ष्मण शहरमें गया वहांके राजा शत्रुदमनकी पांच शक्ति. योंको झेलकर उसको पुत्री जिनपद्मा के साथ विवाह किया ।. वहाँ से आदर सत्कार पाकर चले सो वंशस्थल नगरके पास वंशधर पर्वतपर आकर ठहरे। इस पर्वतके ऊपर दो मुनियोंपर दैत्य रात्रिमें उपसर्ग करता था सो उपसर्ग दूर कर दिया तो दोनों को केवल ज्ञान हो गया। इस पर्वतपर रामचन्द्रने अनेक जिनमंदिर बनवाये थे | फिर वहांसे चलकर दंडक वनमें करनखा नंदी, पर पहुंचे वहां पर मिट्टी और वांसके वर्तन बनाकर फूलोंका भोजन बनाया। मुनियोंके आहारका समय होनेसे.. मुनिमा गमनकी प्रतीक्षा करने लगे । भाग्य योगसे भवधिज्ञानी गुप्तिः