________________
चतुर्थ भाग। से माता बहुत ही दुःखी हैं यदि आप सहायता करें तो बड़ी कृपा होगी यह कहते कहते कल्याणमाला दुःखके आवेशमें मूर्षित हो गई ! सीताने गोदीमें लेकर शीतोपचार किया मू दूर होने 'पर राम लक्ष्मणने धैर्य बंधाया और कहा कि तेरे पिता शीघ्र ही छूटकर पा जायगे तीन दिन वहां रहे फिर अचानक ही गुप्तरीति से चल दिये। वहांसे चलकर मेकला नामक नदीको पार करके विंध्याटवीमें पहुंचे वहां म्लेच्छोंसे (भीलोंसे) युद्ध करके बाल्यखिल्यको छुड़ाया । रौद्रभूत म्लेच्छराजाको वाल्यखिल्यका मंत्री बनाकर उसे समीचीनमार्गमें लगाया। रौद्रभूतके मंत्री होनेसे भीलों पर भी बाल्यखिल्यकी श्राक्षा चलने लगी जिसे देख सिंहोदर भी वात्यखिल्यसे डरकर रहने लगा।
तत्पश्चात् वहांसे चलकर जिस देश ताप्ती नदी वहती थी उस देशमें पहुंचे । एक ब्राह्मणके घर सीताको पानी पिलाया । वहांसे चलकर वनमें आये तो वहांके यक्षने एक नगर बनाकर इन्हे रक्खा, बड़ी सेवाकी फिर वहांसे चले जानेपर विजयपुर नगरके पास वालोद्यानमें ठहरे । वहाँके राजा पृथिवीधरकी पुत्री बनमाला पहिले हीसे लक्ष्मणपर श्रासक थी सो पिता द्वारा दूसरे के साथ सगाई करनेपर वह इसी बनमें फांसीसे लटककर मरने -लगी तब लक्ष्मणने वचाई और अपना परिचय दिया। सब नगर में गये. बड़ा आदर सत्कार हुआ । वहांपर सुना कि-नंद्याचर्चके राजा अतिवीर्य और भरतमें खटपट हो जानेसे अतिवार्य और भरतमें युद्ध होनेवाला है । प्रतिवीर्य बड़ा बलात्य राजा