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________________ १३८ जैनबालबोधक सेवा करते हैं । परंतु राम लक्ष्मण के बिना यह राज्य शामता नहीं । वे दोनों भाई बडे विनयवान थे और सीता हमेशा फूलशय्यापर सोनेवाली पत्थर कंटकमय मार्गमें बिना सवारी कैसे चलेगी सी शीघ्रगामी घोडेपर चढ़कर शीघ्रही जा और उन्हें लौटा ला | मैं भी तेरे संग चलूंगी उन सहित चिरकाल राज कर | यह बात सुन प्रसन्न हो एक हजार घुड़सवार सेनासहित चल पड़े। जो सामंत अमराल नदी पार न कर सकनेके कारण रामके पाससे लौट आये थे उनको साथ लेकर चला। रास्ते में जो मनुष्य मिला उसीसे पूछता गया कि राम जत्रमयाको कहां देखा है ? लोग कहते नजदीक ही हैं। सी पूछते १ वनमें एक तालाब के पास सीतासहित दोनों भाईयोंको बैठे देख घोडेसे उतर कर पैदल चलकर रामके पांवों में पड़कर मूर्चित गया। रामने सचेत किया तब हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हुआ कि - हे नाथ ! राज्य देकर मेरी क्या विडंबना की ? तुम न्याय मार्गके जानकार बडे प्रवीण, मुझे इस राज्यले क्या मतलव और आपके विना मेरे जोनेका कुछ प्रयोजन नहीं । हे प्रभो ! उठो आप नगर चलकर राज्य करो, मैं तुमारे पर छत्र लेकर खड़ा रहूंगा शत्रुघन आपके ऊपर चमर ढोरेगा । लक्ष्मणा भइया मंत्रित्व करेगा । मेरी माता पश्चातापरूप अग्निसे जल रही है । श्रापकी और लक्ष्मणकी माता बडा शांक करके अहोरात्र रुदन करती रहती हैं । इस प्रकार भरत कह रहा था कि माता के कई भी श्रा पहुंची और राम लक्ष्मणको उरसे लगा कर रुदन करने लगी ।
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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