SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ भाग। कर बड़ी मुसकिलसे फिरायो। प्रथम दिन रात्रि होजानेसे चैत्यालयके ही समीप रहे। रात्रिमें कौशल्या प्रादि मातायें फिर आई, समझा बुझाकर उन्हें फिराया। पिछली रात्रिमें दोनों भाई व सीताजी उठ कर भगवान के दर्शन करके. चल दिये तौभी कई स्नेही सुभट इनके साथ चल दिये। इन्होंने बहुत समझाया तौभी लौटे नहीं। अंतमें असराल नामकी एक बड़ी भारी नदी आई तव रामचंद्र लक्ष्मण और जानकीने नदीमें प्रवेश किया सो इनके पुण्यके प्रतापसे नदीका जल कमर तक हो गया। परंतु साथमें आये हुये लोग विलाप कर कहने लगे-हमें भी पार उतारो। परंतु रामने समझा कर कहा कि-आगे भयानक जंगल है। अब तुम वापिस चले जावो, हमारा तुम्हारा यहीं तक साथ था तब लाचार हो वापिस चले गये । इन तीनोंने नदीको पार कर भयानक वनमें निर्भय हो प्रवेश किया। रामके वन चले जानेके पश्चात् दशरथ, भरतका राज्याभिषेक कर सर्वभूतहित स्वामीके निकट वहत्तर राजावोंके साथ मुनिदीक्षा ग्रहण करके. एकांतविहारी जिनकल्पी मुनि हुये और नाना प्रकारके तप करके कर्मोको काटने लगे : . " इधर कौशिल्या सुमित्रा पतिके दीक्षित होने व पुत्रोंके वि. देश गमनले बड़ी दुखित हुई । अहोरात्र अथुपात करि रुदन करती रहीं। इन्हे देख भरत राजविभूतिको विषसमान मानता और केकईके हृदयमें भी सपत्नियों के दुःखसे बड़ा दुःख होने लगा । सो भरतसे कहा-हे पुत्र! तूने राज्य पाया, बड़े'२ राजा
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy