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जैनवालवोधकसुप्रभादि समस्त माताओंको नमस्कार करके निराकुलचित हो भाई बंधु मित्र अनेक राजा उमराव परिवारके समस्त लोगोस मिल भेंटकर सबको दिलासा देकर छातीसे लगाय सबके आंसू पोंछे सपने रहनेको बहुत कहा परंतु नहीं मानी। सामंत हाणे घोड़े रथ सवकी तरफ कंपा दृप्टिसे देखा बड़े २ सावंत हाथी घोड़े मेंटमें लाये परंतु हम तो पैदल ही जावेंगे ऐसा कहकर फेर दिये। ___ सीताजी अपने पतिको विदेशगमन करते देख वह भी सासु ससुरको प्रणाम करके पतिके साथ चली और लक्ष्मगा, रामको विदेशगमनमें उद्यमी देख क्रोधके साथ विचारता हुआ कि-पिताने स्त्रीके कहनेसे यह क्या अन्याय किया ? जो रामको छोड श्रन्यको राज्य दिया। यह बड़ा ही अनुचित है ! मैं एसा समर्थ हूं कि अभी समस्त दुराचारियोंका पराभव करके श्रीरामके चरणों में राजलक्ष्मीको प्राप्त करूं परंतु यह वात उचित नहीं, क्रोध वड़ा दुखदायक है। पिताजी दीक्षा लेनेको तत्पर हैं ऐसे समयमै कुपित होना योग्य नहीं । मुके ऐसे विचारसे मतलब ही क्या? योग्य अयोग्य पिताजी या बड़े भाई जानें इस प्रकार विचार कर कोप छोड़ धनुष वाण हायमें लेकर पिता मातादि समस्त गुरुजनोंको नमस्कार करके रामके साथ चल दिया। दोनों भाई जानकीसहित राजमंदिरसे निकले। माता पिता भरत शत्रुधन आदि समस्त जन अनुपात करते संग चने दोनों भाइयोंने संघको समझाकर धीरज बंधा