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________________ चतुर्थभाग राज्य कर । इस प्रकार श्रीराम, समझाकर पिता और केकई माताको विनयसहित नमस्कार करके लक्ष्मणसहित वहांसे चल दिये, पिताको मूर्छा प्रा गई । राम तर्कसबांध धनुष हायमें लेकर माताको नमस्कार करके कहने लगा कि हे माता! अब मैं अन्य देशको जाता हूं।तू चिंता नहीं करना ! तब माताको भी मूर्छा आ गई। थोड़ी देर बाद सचेत होकर अनुपात करने लगी हाय पुत्र ! तुम मुझे शोक समुद्र में डालकर कहां जाते हो? माताके पुत्र ही आलंबन हैं । विलाप करती माताको धीरज बंधा कर रामने कहा कि-हे माता ! तू विषाद मतकर । मैं दक्षिण दिशामें कहीं पर भी स्थान बनाकर तुझे अवश्य ले जाऊंगा । हमारे पिता ने केकई माताको वर दिया था सो उसके अनुसार भरतको राज्य दिया, अब मैं यहां नहीं रहूंगा । तव माताने पुत्रको उदर से लगा लिया और रोकर कहा कि मैं तेरे साथ ही चलूंगी तेरे देखे विना मैं प्राण रखनेको समर्थ नहीं। जोकुलवंती स्त्री हैं वे पिता पति या पुत्रके ही प्राधीन रहती हैं। सो पिता तो कालग्रस्त हुआ। पति जिनदीक्षा ले रहे हैं। अब तेरा ही प्रालंवन है सो तू छोड़कर चला, मेरी अब क्या गति होगी ? तव रामचन्द्र बोले-माता! मार्गमें कंकर पत्थर कांटे बहुत होते हैं, तुम पैदल कैसे चल सकती हो इसलिये मैं कोई सुखका स्थान निश्चय करके फिर रथमें विठाकर लेजाऊंगा। मुझे तेरे चरणोंकी शपथ है मैं. तुझे अवश्य ले जाऊंगा । इसप्रकार कहकर माताको शांतिप्रदान कर फिर पिताके पास गये, उन्हे नमस्कार करके केकई सुमित्रा
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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