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________________ जैनवानबोधकइन धनुषोंके पास आये। इनके पुण्यके प्रतापसे अग्नि शीतल हो गई और वज्रावर्त धनुषको चढ़ाया जिसके शब्दसे समस्त राजा प्रजा भयकंपित हो गये। तत्पश्चात् लक्ष्मणने दूसरा सागरावर्त धनुष चढ़ाया तब विद्याधर वगेरह सब ही उदास हो गये और सीताने रामके गलेमें वरमाला पहनादी और उन्हीके साथ विवाह हो गया। दोनों भाई दोनों धनुष और जानकीको लेकर अयोध्या गये। इधर धनुषके साथ जो विद्याधर आये थे सो उनने रथुनूपुर जाकर चंद्रगतिसे सब समाचार कहे । उस परसे भामंडल कुपित होकर सीताको छीनकर लानेके लिये विमानोंमें बैठकर चन दिया परंतु जब अपने पूर्वजन्मके स्थान विदर्भनगर पर पाया तौ उसे पूर्वजन्मका स्मरण हो पाया और यह जानकी तो मेरी सगी वहन है यह जानकर बड़ा खिन्न हुआ और अपनेको बड़ापापी समझ धिक्कारने लगा फिर शांतचित्त हो अपने घर पाया। माता पिताने उसे मलिनमुख देख'प्यारसे पूछा कि क्या बात है ? तर उसने कहा कि मैंने बड़ा पाप किया सीता तो मेरी सगी बहन । है। मैं और वह दोनो विदेहाके गर्भसे एक साथ पैदाहुये । मुझे शत्रु देव ले गया सो उसने पटक दियातव आप ले आये पालन किया तत्पश्चात् अजोध्या जाकर यहन सीतासे मिला । वह भ्राता को पाकर बड़ी प्रसन्न हुई फिर रामचंद्र आदि सबसे मिलकर परम आनंदकेसाथ मिथिलापुरी जाकर माता पिताके दर्शन कर उनको प्रसंन किया, नगरमें बडाभारी उत्सव हुवा । जनकने बड़ेभारी दान पूजनादि किये।
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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