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चतुर्थ भाग ।
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वी राजकुामर वोले कि इतने बड़े २ राजा महराजाओं को छोड़कर एक अज्ञातकुलशील विदेशीको वरमाला पहनाई सो कन्या i मूर्ख है इस दोनको मारकर कन्या छोन लो । तब कन्याके पिता | महाराज शुभमतिने राजा दशरथ से कहा कि हे भव्य ! मैं इन । दुष्टोंको निवारण करता हूँ तुम कन्याको रथमें बिठाकर अन्यत्र
जानो । तब दशरथ महाराजने हंसकर कहा कि आप निश्चित रहिये मैं अभी आपके देखते २ इन सब गीदड़ों को भगाये देता हूं - ऐसा कहकर रथपर चढ़ गये और केकई सर्व कला में चतुर रथः हांकने लगी सो समस्त प्रधान २ राजाओंको युद्ध करके सगा : दिया । केकईके रथ हांकनेकी चतुराईसे हो अकेले दशरथने समस्त राजाओंको जीतकर विजयलक्ष्मी प्राप्त की तत्पश्चात् कौतुकमंगल नगर में केकईका पाणिग्रहण करके गाजे बाजे और मंगलाचार सहित प्रजोध्या प्राये और राजा जनक मिथलापुरी गये और फिरसे जन्मोत्सव व राज्याभिषेक हुआ। महाराज दशरथने समस्त रानियोंके सामने केकईसे कहा कि-तेरी रथ हांकने की चतुराईसे मैं बहुत ही प्रसन्न हुआ सो तूमन चाहा वर मांग, तब के कई विनयपूर्वक प्रार्थना की कि मेरा वर अपने पास जमा रक्खे, जब मुझे जरूरत होगी तब मांग लूंगी। तब राजाने कहा कि-ठीक है । तेरा वर जमा है जब जरूरत हो तब मांग लेना ।
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इसप्रकार महाराज दशरथ चारो रानियों सहित नाना प्रकार के विषय भोग करते हुये सुखसे राज्य करने लगे । तत्पश्चात् क्रमसे कौशल्याके उदरसे रामचन्द्र सुमित्राके लक्ष्मण और केक के भरत तथा सुप्रभाके शत्रुघ्न इसप्रकार चार पुत्ररत्न:
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