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________________ · ·१२६ जैनबालवोधकउत्पन्न हुये। चारों ही के जन्म समय नाना प्रकारके उत्सव हुये ‘दरिद्रोंको किमिच्छा दान दिया और जिनमंदिरों में मंडलविधान श्रादि परम उत्सव किये । जब चारो भाई बड़े हो गये ना समस्त प्रकारको विद्यायें पढ़ाई गई विशेषकर धनुर्विद्याके जान कार विद्वानसे धनुर्विद्या सिखाई, जिससे चारो दी भाई समस्त विद्याभोंके पारगामी हो गये । चंपापुरके राजा चक्रध्वज रानी मनस्विनीके चित्रोत्सवा 'नामकी सुंदर कन्या थी सो कुमारी चटशाला में पढ़ती थी। उसी राजाका पुरोहितका पुत्र पिंगल भी उसी पाठशालामें पढ़ता था तो इन दोनोंके परस्पर प्रीति हो गई। पिंगलने चित्रोत्सवाको कहा कि महाराज मेरे साथ तेरा विवाह हरगिज न करेंगे इस कारण चलो, कहीं भग चौने । तर वह पिंगल राजपुतीको लेकर जहां अन्य राजाओंकी गम्य नहीं ऐसे विदर्भ नगरमें आकर नगर के बाहर कुटी बनाकर रहने लगा और दोनों जने तृण काष्ट पंच कर बड़े कटसे गुजारा करने लगे । उस नगरके राजा प्रकाश सिंहका पुत्र कुंडलमंडित एक दिन चित्रोत्सवाको देख कर मोहित हो गया सो अपनी दुती भेजकर चित्रोत्सवाको अपने महलमें बुला लिया सो नाना भोग भोगने लगा। इधर पिंगल स्त्रीके हरण से पागलासा हो गया परंतु भ्रमता २ एक दिन आर्यगुप्तमुनिके दर्शन हो गये, उपदेश पाकर दिगम्बर मुनि हो गया सो मरकर भवनवासी देव हुश्रा और चित्रोत्सवा और कुंडलमंडित श्रावक के व्रत धारकणर मरे सो दोनों ही राजा जनककी रानी विदेहाके “गर्भ आये । भवनवासी देवने अवधिज्ञानसे विचारकर देखा
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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