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जैनवालवोधकलिया यही हम भी लेगें सो वे दीक्षा ले गये और भगीरथ महा. राजने अणुव्रत लिये । चक्रवर्ती और उनके पुत्र सवको यथासमय केवलज्ञान प्राप्त हुश्रा और सव मोक्षमें गये।
भगीरथ महाराजने जव पिताके मोक्ष जानेका समाचार सुना तौ शिवगुप्त मुनिके पास कैलासपर गंगाके किनारे मुनिदीक्षा धारण कर ली। देवोंने आकर उसी गंगाके जलसे भगीरथका अभिषेक किया। भगीरथके चरणोंसे गंगाके जलका संयोग होने के कारण गंगा नदी पवित्र हो गई और भागीरथीके नामसे प्रसिद्ध हुई और उसी दिनसे लोग इसे तीर्थ मानने लगे। भगी. स्थ महाराजको भी केवलझान हुआ और कैलास पर्वतसे मोक्ष को पधार गये।
३३. छहढाला प्रथमढाल ।
सोरठा। तीनभवनमें सार, वीतराग विज्ञानंता । शिवस्वरूप शिवकार, नमहुँ त्रियोग सम्हारिक ॥ १ ॥
मैं (दौलतराम) तीनलोकमें सार कल्याण करनेवाली मोक्षस्वरूप वीतराग विज्ञानताको (निर्दोषवानरूपी विद्याको) मन वचन कायको सम्हालकर नमस्कार करता हूं ॥१॥
चौपाई १५ मात्रा। जे त्रिभुवनमें जीव अनंत । सुख चाहे दुखते भयवंत ।।