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________________ चतुर्य भाग । ११५ मित्रको समझाकर संसारसे उदासीन होनेका अच्छा मोका देख कर सर्पका रूप धारण करके अपनी फुंकारसे सगरके समस्त पुत्रोंको वेहोश कर दिया । फिर एक लड़केकी लास कंधपर लेकर वृद्ध ब्राह्मणका रूप धारण करके सगरके पास गया और कहने लगा कि महाराज ! आप सबके रक्षक हैं, यमराजने मेरे जवान पुत्रको अकालमें ही मार दिया सो श्राप इसकी रक्षा करें इसपर सगर, चक्रवतींने कहा कि संसारमें यमकी दाढसे जीव को निकालनेवाला कोई नहीं है इसलिये हे वृद्ध ! तुम इस लासका मोह छोड़कर तप धारण करो, नहीं तौ प्राज कलमें तुमको भी यमकी दादमें जाना पड़े तौ प्राचर्य नहीं । तत्र ब्राह्मणने कहा कि आपका कहना यथार्थ है परंतु मैंने रास्ते में अभी २ सुना है कि- कैलासकी खाई खोदते २ आपके सब पुत्र मर गये, धाप - क्यों नहीं तप धारण करते ? इसको सुनते ही चक्रवर्त्ती वेहोश हो गया और शीतोपचार से जब चेत या गया तो एक राजदूतने आकर सव पुत्रोंके मरनेकी खबर सुनाई जिससे चक्रवत्तको संसारकी अनित्यतासे बड़ा भारी वैराग्य हो गया और उसीवक्त 'विदर्भा रानी के पुत्र भगीरथको राज्य देकर आपने तप धारण -कर लिया । तत्पश्चात् मणिकेतु देवने उन साठ हजार पुत्रोंको सचेतकर 'के कहा कि--तुमारे पिताने तुम सबका मरण समाचार सुनकर भगीरथको राज्य देकर तप धारण कर लिया है। यह बात सुनते ही उन सबको वैराग्य हो गया और जो मार्ग हमारे पिताने
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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