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चतुर्थ भांग |
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-५। जिस कर्मके उदयसे शरीर लोहे के गोलेके समान भारी और प्राककी रूईके समान हलका 'न हो उसे अगुरुलघु नाम कहते हैं ।
५६ । जिस कर्मके उदयसे अपने ही घात करनेवाले अंग
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दों उसे उपघात नाम कर्म कहते हैं । - -
५७। जिस कर्मके उदयसे दूसरेका घात करनेवाले अंग उपांग हों, उसे परघात नाम कर्म कहते हैं ।
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५८ । जिस कर्मके उदय से प्रातापरूप शरीर हो उसे आताप कर्म कहते हैं । जैसे सूर्यका प्रतिविंव ।
५६) जिस 'कर्मके उदयसे उद्योतरूप शरीर हो उसे उद्योत नाम कर्म कहते हैं।
६० । जिस कर्मके उदयसे श्राकाशमें गमन हो उसे विहा योगति नाम कर्म कहते हैं। इसके शुभविहायोगति और अशुभविहायोगति दो भेद हैं।
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६१ | जिसे कर्मके उदयसे श्वासोच्छवास हों उसे उच्छवास नाम-कर्म कहते हैं।
६। जिस कर्मके उदयसे द्वींद्रिय आदि जीवोंमें जन्म हो उसे स नाम कर्म कहते हैं।
• ६३ । जिस कर्मके उदयसे पृथिवी श्रप तेज वायु और वनस्पतिमें जन्म हो उसे स्थावर नाम कर्म कहते हैं ।
६४ । जिस कर्मके उदयसे अपने २ योग्य पर्याप्ति पूर्ण हों उसे पर्याप्त नाम कर्म कहते है