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________________ चतुर्थ भाग। ३३ जिस कर्मके उदयसे भंग उपांगोंकी ठीक २ रचना हो उसको निर्माण कर्म कहते हैं। ३४ाजिस कर्मके उदयसे श्रौदारिकादिक शरीरोंके परमाणु परस्पर संबंधको प्राप्त हों उसको बंधननाम कर्म कहते है। ३५ जिस कर्मके उदयसे औदारिकादि शरीरोंके परमाणु. छिद्ररहित एकताको प्राप्त हों उसे संघात नाम कर्म कहते हैं। ३६ । जिस कर्मके उदयसे शरीरकी प्राकृति (शकल नै उसे संस्थाननाम कर्म कहते हैं। ३७ । जिस कर्मके उदयसे शरीरकी शकल ऊपर नीचे वीच. में समभागले बने, उसे समचतुरस्रसंस्थान कहते हैं। • ३८ जिस कर्मके उदयसे जीवका शरीर पड़के वृक्षकी तरह नाभिसे नीचेके अंग छोटे और ऊपरसे बड़े हों उसे न्यग्रोध परिमंडल संस्थान कहते है। ३६ जिस कर्मके उदयसे नाभिसे ऊपरके अंग छोटे और नीचेके बड़े हों उसे स्वातिसंस्थान कहते हैं। ४० । जिस कर्मके उदयसे कुबड़ा शरीर हो उसे कुन्जक संस्थान कहते है। ४१। जिस कर्मके उदयसे बौना (छोटा) शरीर हो उसे बामनसंस्थान कहते हैं। ४२॥ जिस कर्मके उदयसे शरीरके आंगोपांग किसी खास शकलके न हों उसे हुंडक संस्थान कहते हैं। • ४३ । जिस कर्मके उदयसे हाड़ोंका बंधन विशेप हो उस्ले संहनननाम कर्म कहते हैं।
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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