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चनुय भागा
१०५ महाबीर महावीर, धीर परपीर निवारन ।
वड़े पुरुष संसार, सार संपति सुखकारन । .ए पंच कुमर पदई सुमर, कठिन शील-बालक उमर · . सिरनाय नमो जुग जोरिकर, भो जिनंद भवताप हर।सं।
३१. कमसिद्धांत । (२)
... (नाम कर्म ) . - २७i जो कर्म जीवको गनि प्रादिक नानारूप परिणमावै . अथवा शरीरादिक बनावै उसको नामकर्म कहते हैं। नामकर्म
आत्माके सूक्ष्मत्वगुणको धातता है। - २४ा नामकर्म तिरानवे प्रकारका है चारगति (नरक, तिर्यक् मनुष्य देव ) पांच जाति (एकेंद्रिय, बौद्रिय, त्रीद्रिय, चतुरिद्रिय पंचेंद्रिय) पांच शरीर ( औदारिक, वैक्रियिक, आहारक. तेजस, कार्माण, तीन आंगोपांग (प्रौदारिक वैक्रियिक आहारक) एक निर्माण कर्म पांत्र बंधनकर्म (ौदारिकयन्धन, वैक्रियिकबंधन. श्राहारक बंधन, तेजसबंधन, कार्माणवंधन ) पांच संघात (ौदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तेजस, कार्माण छहसंस्थान (समचतुरखसंस्थान, न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, स्वातिसंस्थान, कुन्जकसंस्थान, नामसंस्थान, हुंडकस्थान ) इह संहनन (वनवृषमनाराच संहनन वज्रनाराच संहनन नाराचसंहननं, अर्द्धनाराव: संहनन, कीलकसंहनन, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन ) पांचवर्ण