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________________ जैनबालवोधक कुटिल कुरूप नारी कानी काली कलिहारी, कर्कश वचन वोलैं औगुन महत है। हा हा मोहकर्मको विडवना कही न जा, ऐसो गृह पाय मूढ़ त्याग्यो ना चहत है ॥ ४॥ ३०. श्रीकुंथनाथ तीर्थंकरादिका संक्षिप्त परिचय। i. १७ । श्रीकुंथुनाथ । 'छप्पय। कुंथु कुंथु रखवार, सार सरवारथ सिधिवस । ___ हस्तिनागपुर आय, काय चामीकर हर सस ॥ . . सूर सैन नृप जैन, ऐन श्रीकांता शुम मन' ' . श्रायु चानवे हजार वरस, पैंतीस धनुष तन ॥ खरगासन लच्छन छाग शुभ, तारे जिन बैरागधर। सिरनाय नमौं जुग जोरिकर, 'भो जिनंद भव तापहर। १७॥ नाम-श्रीकुंथुनाथ । पूर्वस्थान - सर्वार्थसिद्धि जन्मस्थानहस्तिनापुर । पिता-सूरसैन राजा। माता-श्रीकांता । लन्छन बकरा। शरीरका वरनं ताये सोनेकासा । शरीरकी ऊंचाई३५ धनुष । आयु-पंचानवे हजार वरस।मुकिगमन-खड्गासनसे । ये तीर्थंकर भी छठे-चक्रवर्ती ये ॥१७॥ . १८॥ श्रीअरनाथ तीर्थकर। पर परि करि-हर सिंह, जयंतविमान जानि जन । . . ."
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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