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चतुर्य भाग। देह माहि रोग प्रायो चाहिजै जिया भरायो, __ फटगये अंदर चरण-दासी है नहीं। .. नारीमन जार भायो तासों चित प्रतिलायो,
यह तौ निवल वह देव दुख प्रतिही। गृहमाहि चौर पर प्रागी लगै सब जरै,
राजा लेहि लूट बांधै मारै सीस पनही। इटको वियोग ौ अनिष्टको संजोग होइ,
एते दुःख सुख मानै सो तौ मूहमति ही ॥२॥ जेठ मास धूप परै प्यास लगै देह जरै,
कहीं सुनी सादी गमी तहां जायो चाहिये। वर्षा में बुचात भोन लकरी निवरि गई,
ताको चल्यो लैन पांव डिग्यो दुख लहिये ॥ . 'शीतके समयमांहि, अंबर मवीन नाहि,
भूख लगै मात, मिलै नाहि कष्ट सहिये। जे जे दुःख गृह माहि, कहाँलों, बलाने जादि,
तिन्दै सुख जानै सो तो महा मूद कहिये ॥३ तिनको पुरानो घर कौडिसौ न धान जामें,
मूसे विल्ली सांप बी न्योले जुरहत है। भाजन तौ मृत्तिकाके फूटे खाली धान नाहि,
टूटी जो खैरी खाटमल्लिका लहत हैं। १ कपडे । २ जूतियां । ३ पासको । ४ कोडीमर । ५ विना नियोनेबुमनेवाली। जिसमें खटमल है। . .
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