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________________ ૨૮ जैनवालबोधक : चरस कोष मान माया लोभ कहते है ।. २३ । जो आत्माके सकल चारित्रको धार्ते उनको प्रत्यास्था नाव कोध मान माया लोभ कहते हैं 1 २४ | जो प्रात्माके यथाख्यात चारित्रको धातै उनको संज्वलन क्रोध मान माया लोभ और नोकपाय कहते हैं। २५ । जो कर्म आत्माको नारक, तिर्येच, मनुष्य और देवके शारीरमें रोक रक्खै उम्रको धायुकर्म कहते हैं अर्थात आयुकर्म मा अवगाह गुणको घातता है। २६ | प्रायुकर्म चार प्रकारका है। नरकायु, तिर्यचायु, मनुस्वायुः और देवायुः । २९ गृहदुःखचतुष्क । 1 सवैया ३१वा | बजगार बने नाहि धन तौ न घरमादि, खानेकी फिकर बहु नारि चाहे गहना । : बैनेवाले फिर जाहिं मिले तो उधार नाहि, 2 साभी मिले चौर, धन भावे नाहि लहना । कोऊ पूत ज्वारी भयो घरमांहि सुत थयो, एक पूत भर गयो ताको दुख सहना 1 पुत्री पर जोग भई, दाही सुता जम लई, IF - एते दुःख सुख जाने तिसे कहा कहना ॥ १ ॥ • • :
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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