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जैनवालबोधक
: चरस कोष मान माया लोभ कहते है ।.
२३ । जो आत्माके सकल चारित्रको धार्ते उनको प्रत्यास्था
नाव कोध मान माया लोभ कहते हैं
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२४ | जो प्रात्माके यथाख्यात चारित्रको धातै उनको संज्वलन क्रोध मान माया लोभ और नोकपाय कहते हैं।
२५ । जो कर्म आत्माको नारक, तिर्येच, मनुष्य और देवके शारीरमें रोक रक्खै उम्रको धायुकर्म कहते हैं अर्थात आयुकर्म मा अवगाह गुणको घातता है।
२६ | प्रायुकर्म चार प्रकारका है। नरकायु, तिर्यचायु, मनुस्वायुः और देवायुः ।
२९ गृहदुःखचतुष्क ।
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सवैया ३१वा |
बजगार बने नाहि धन तौ न घरमादि,
खानेकी फिकर बहु नारि चाहे गहना । : बैनेवाले फिर जाहिं मिले तो उधार नाहि,
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साभी मिले चौर, धन भावे नाहि लहना । कोऊ पूत ज्वारी भयो घरमांहि सुत थयो, एक पूत भर गयो ताको दुख सहना 1 पुत्री पर जोग भई, दाही सुता जम लई,
IF - एते दुःख सुख जाने तिसे कहा कहना ॥ १ ॥
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