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जैनवालवोधकपरके दोष कहें नहि कय हूं, हित मित सत्य वचन बोले । करें कार्य निकाम सभी हम, हदय ग्रंथि मनसे खोलें ॥५॥ गुरुजन गुणीजनोंकी सेवा, करें हदयसे सुखकारी । इन्द्रिय विजय और संयमसे, कर निजातम बढ़वारी॥ वर्ण भेद रख मंत्री पूर्वक, भारतका उत्थान करें। शुद्ध स्वदेश वस्तु वत हम, सदा स्वपर कल्याण करें॥७॥ धम कर्ममें अटल रहें हम, यही भावना करते हैं। "लाल" वाल सिर नाय वीरको, ध्यान उन्हींका धरते हैं ८॥
१. स्तुतिसंग्रह।
दोहा। तुम देवनके देव हो, सुख सागर गुनखान । भूरति गुन को कहि सके, करों कह युति गान ॥१॥ फले कल्प तरु वेल ज्यों, वास्ति सुर नर राज। चिंतामनि ज्यों देत है, चिंतित अर्थ समाज । २॥ स्वामी तेरी भक्तिसों, भक्त पुण्य उपजाय । तीन अरय सुख भोगवै, तीनों जगके राय ।३। तेरी थुति जे.करत है, तिनको थुति जग होय। जे तुम पूर्जे मावसों पूजनीक ते लोय ॥४॥ नमस्कार तुमको करे.विनयसहित शिरनाय । चंदनीक ते होत है, उत्तम पदको पाय ॥ ५ ॥ जे आशा पालें प्रभू, तिन आक्षा जगमांहि । - नाम जपैतिस नामका, जस फल जगमैं छोहि ॥ ६ ॥