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बुलमनथ गोठा नं ९
श्रीपरमात्मने नमः ।
जैनवालवोधक । चतुर्थ भाग ।
दोहा ।
देव धर्म गुरुको नम्रं, जिन चच चितमें धार । जैनवालबोधक तुरिय, संग्रह करूं विचार ॥ १ ॥
श्रीमहावीर जिन प्रार्थना |
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( न्यायालंकार पं० मक्खनलाल जैन कृत )
हे गुणसागर वीर प्रभो जिन, शुद्ध रूप हो जग ख्याता । राग द्वेष सब दोष दूर कर, जगत समस्त वस्तु ज्ञाता ॥ १६ इच्छा नहीं आपके स्वामी, जग अनादि है नियम यही । पुण्य पाप हम जो जब करते फल भोगें स्वयमेव वही ॥ २ ॥ तो भी ध्यान और गुण चिन्तन, करें आपका जो प्राणी । वे भी परमेश्वर हो जावें, यही बताया जिनवाणी ॥ ३ ॥ सरल चित्त हो शुद्ध भाव हो, अरु करुणा हो हितकारी । सब जीवोंका हित हो हमसे, लोक बन्धुता मति प्यारी ॥४॥