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तृतीय भाग ।
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" जो न प्रमाणोंसे विरुद्ध हो, करता होय कुपथखंडन ॥ वस्तुरूपको भली भांतिसे, बतलाता हो जो शुचितर । .. - कहा आता शास्त्र वही है, शास्त्र वही है सुन्दर तर ||६||
जो जीवोंका हितकारी हो, जिसका कभी खंडन न हों जो प्रत्यक्ष परोक्ष प्रमाणोंसे विरुद्ध न हो, कुमार्गका खंडन करनेवाला हो, वस्तुका सत्यार्थ स्त्ररूप बतानेवाला हो, ऊपर कहे हुये सत्यार्थ का कहा हुवा हो वही सच्चा शास्त्र है ॥९॥
सत्यार्थ गुरुका लक्षण |
विषय छोडकर निरारंभ हो; नहीं परिग्रह रक्खै पास । -ज्ञानं ध्यान तपमें रत होकर, सब प्रकारकी छोडै घास ॥ ऐसे ज्ञान ध्यान तप भूषित, होते जो सांचे मुनिवर । वही सुगुरु हैं, वही सुगुरु हैं, बड़ी सुगुरु हैं उज्जलतर ॥१०॥
जो पंचेंद्रियोंके विषयको आशा, आरंभ, व परिग्रहसे रहित हो तथा ध्यान तपमें लवलीन हो, वही सत्यार्थ ( सच्चा ) गुरु है ॥ १० ॥
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२३. पृथिवी ।
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इस भारतवर्ष के प्राचीन विद्वानोंने इस पृथिवीको थाली की समान गोल और चपटी तथा स्थिर माना है और सूर्यचंद्रादि ग्रह नक्षत्र तारा ये सब ग्रह पृथिवीके उपरि