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जैन बालबोधक
वेद १८ इन अठारह दोषोंसे रहित हो, वही वीतरामी सच्चा देव है || ६ ||
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हितोपदेशी किसे कहते हैं ?.
सर्वोत्तम पदपर जो स्थित हो, परम ज्योति हो हो निर्मल । वीतराग हो महाकृतो हो, हो सर्वज्ञ सदा निवल || आदि रहित हो तरहित हो, मध्यरहित हो महिमावान | सव जीवका होय हितैषी, हितोपदेशी वही सुजान ॥ ७ ॥
जो परमेष्ठी, ( सर्वोत्तम पदपरस्थित ) परमज्योति, वीतराग, विमल, कृतकृत्य, सर्वज्ञ आदि मध्य अंतर हित और सब जीवोंका हितैषी हो वही हितोपदेशी सच्चा देव है । .
जो वीतरागी व कृतकृत्य हो वह हितोपदेशी कैसे हो सका है ? विना रागके विना स्वार्थ के सत्यमार्ग वे बतलाते । सुन सुन जिनको सत्पुरुषोंके, हृदय प्रफुल्लित हो जाते ॥ उस्तादोंके करस्पर्शसे जब मृदंग ध्वनि करता है । नहीं किसी से कुछ चहता है, रसिकोंके मन हरता है ||८|| जिसप्रकार बजानेवाले के हाथके स्पर्श होने पर मृदंग बिना राग और विना स्वार्थके ही मीठे मीठे शब्द सबको सुनाता है उसी प्रकार वीतराग और कृतकृत्य भगवान भी सबके लिये हितका उपदेश कहते हैं जिसको सुनकर सज्जन पुरुषोंका चित्त प्रफुल्लित होता है ॥ ८ ॥
सत्यार्थ ( सच्चे ) शास्त्रका लक्षण |
जो जीवोंका हितकारी हो, जिसका हो न कभी खंडन -