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तृतीय भाग। सच्चे देवशास्त्रगुरुका मैं, लक्षण यहां बताता हूं। तीनमूढता पाठ अंग मद, सबका भेद जताता हूं ॥४॥
आठ अंगसहित तीनमूढता और आठपदरहित सत्यार्य देव शास्त्र गुरुपर दृढ श्रद्धान करना सो सम्यग्दर्शन है।॥४॥
- सत्यार्थ ( सच्चे ) देवकी पहिचान । जो सर्वज्ञ शास्त्रका स्वामी, जिसमें नहीं दोषका लेश । वही आप्त है वही प्राप्त है, वही आप्त है तीर्थ जिनेश ॥ जिसके भीतर इन बातोंका, समावेश नहिं हो सकता। नहीं आत वह हो सकता है, सत्य देव नहिं हो सकता ॥५॥ - जो सर्वज्ञ, हितोपदेशी, (शास्त्र का स्वामी ) अष्टादनदोष रहित और चीतरागी है वही सत्यार्थ (सचा ) आप्त हैं जिसमें ये तीन गुण नहीं हैं वह सच्चादेव या प्राप्त कदापि नहीं है ॥ ६ ॥
वीतरागी किसको कहते हैं। भूखप्यास चीमारि वुढापा, जन्म मरण भय राग द्वेष । शोक मोह चिंता मद अचरज, निद्रारती खेद ओ स्वेद ॥ दोष अठारह ये माने हैं, हों ये जिनमें जरा नहीं। आप्त वही है देव वही है, नाथ वही है और नहीं ॥६॥
जो भूख १ प्यास २ वीमारी ३ वुढापा ४ जन्म. ५ भरण ६ भय ७ राग ८ द्वेष ६ शोक १० मोह ११ चिंता १२. मद १३ आश्चर्य १४ निद्रा १५ रति १६ खेद.१७.