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जैनबालबोधक
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भाग में सुमेरु पर्वतके ( जो कि पृथिवीके बीच में लाख योजन ऊँचा दगडाकार स्थित है ) चारों तरफ पूर्वसे दक्षिण पश्चिम होकर फिरते हुए माने हैं और इसी मान्य और ग्रहों की चाल परसे गणित करके वे हिसाव निकालते हैं किअमुक दिन और अमुक समय पर चन्द्रग्रहण और अमुक दिन सूर्यग्रहणा इतना होगा इत्यादि तिथिवार नक्षत्र आदि सब ठीक २ पंचांग बनाकर बताते हैं परन्तु आजकल के इयुरोपीय विद्वानोंने अनेक यन्त्रोंके द्वारा निरीक्षण करके पृथिवीको नारंगीकी तरह गोल और गाडीके पइयेकी तरह पश्चिम से पूर्वकी तरफ फिरती हुई माना है और सूर्यको स्थिर माना है तथा चंद्रादि ग्रहोंको पृथिवी और सूर्यकी चारों तरफ फिरते हुए माना है । वे भी इसी मान्य परसे ( पृथिवीकी चाल परसे) सूर्य चन्द्रमाके ग्रहण आदिका निश्चित समय पहिलेसे ही निर्दिष्ट कर देते हैं यद्यपि इन विद्वानोंने इस बातको प्रत्यक्ष वा अनुमान द्वारा सिद्ध करके नकसा खींचकर सर्व साधारणको समझा दिया ( बहका दिया ) है कि पृथिवी गोल है, घूमती है परन्तु अब भी बडे २ विद्वानोंने इस वातको स्वीकार नहि किया है उनको पूर्णतया विश्वास है कि पृथिवी स्थिर है और थाली की समान वा पहाड़की समान बीचमें से उठी हुई क्षार समुद्रके बीच में टापूकी समान गोल है और इस बातको सिद्ध करने के लिये वहुतसे प्रमाण भी दिये हैं । आज कल