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जैनघालवोधकएक गल पिंड है यह प्रगठरूप देखने में नहिं आता। इस कारण इसको भनिद्रिय भी कहते हैं। कमलाकार मनको तौ द्रव्य मन कहते हैं और उसके द्वारा जो विचार होता रहता है उसे भाव मन कहते हैं।
२०. भूधर जैननीत्युपदेशसंग्रह दूसराभाग।
वुढापेका वर्णन।
कवित्त मनहर। बालपनै वाल रह्यो पीछे गृहभार भयो, लोकलाजकाज वांध्यौँ पापनको ढेर है । अपनौ अकाज कीनो लोकनमें जस लीनो, परभो विसार दीनो विषैवसजेर है | ऐसेही गई विहाय अलपसी रही भाय नरपरजाय चर आंधेकी वटेर है । आये सतभैया अब काल है अवैया अहो, जानी रे सयाने तेरे बुजौं हूँ अंधेर है।। ॥१॥
मत्तगयंद सवैण। बालपनै न सँभार सक्यो कछु, जानत नाहि हिताहितही को यौवनस बसी वनिता उर, के नित रागरह्यो लछपीको ।
१ विषयरूपी विषमें फसा हुवा ।२ आयु-उमर । ३ सफेद वाला ४ अव भी ५ युवाअवस्थामें।।