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जैनवालबोधक
घ्राण-प्राण इन्द्रियका विषय गंध है । गंध दो प्रकार की है । एक सुगन्ध, एक दुर्गंध । इन सुगन्ध दुर्गंध का ज्ञान नासिका इन्द्रिय से ही होता है । जिस वस्तु में जैसी गन्ध होती है उसके सूक्ष्म परमाणु हवा के साथ उड़कर हमारी नासिका इन्द्रियमें प्रवेश करते हैं तब हमे सुगन्ध दुर्गधका ज्ञान होता है । नासिका इन्द्रिय न हो तो कौनसा पदार्थ सड गया है कौनसा ताजा व अच्छा है इत्यादि ज्ञान कदापि नहीं हो
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सकता ।
चक्षु - इन्द्रियका विषय वर्ण ( रूप-रंग ) जानना है । वर्ण पांच प्रकारके हैं । स्वेत, पीत, कृष्ण, नील, लाल । इन वर्णोंको दो दो तीन तीन न्यूनाधिक मिलानेसे हरे, बैंगनी, जंगाल आदि अनेक प्रकारके रंग बन जाते हैं । इन सर्व प्रकारके वर्णों को हम चक्षु (नेत्रों ) द्वारा ही जान सकते हैं चक्षुको दर्शनेन्द्रिय, नेत्र व नयन भी कहते हैं। जहां पर अंबकार नहिं होता वहीं पर चक्षु इन्द्रियसे जान सकते हैं । प्रकाशकी सहायता के विना चक्षु इन्द्रियसे ज्ञान होना वडा कठिन है । दिनमें तौ सूर्यका प्रकाश रहता है और गत्रिमें चंद्रमा तारोंका तथा दीपका प्रकाश रहता है जब चन्द्रमा तारे वहलोंसे ढक जाते अथवा घरोंमें चांद तारोंका प्रकाश नहि पहुंचता तब दीपक ( चिराग ) दिया सलाई वगेरह के प्रका शसे काम लेते हैं जिससे निकटवर्ती आवश्यकीय पदार्थोंको भले प्रकार देख सकते हैं । चतु इन्द्रिय : जिनकी नष्ट हो