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तृतीय भाग ।
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कोमल, कठोर इन आठ प्रकारके स्पर्शका ज्ञान होता है इसी कारण इसे स्पर्शन इन्द्रिय कहते हैं । अन्धकारमें जब चतु इन्द्रियसे ज्ञान नहिं होता तब स्पर्शन इन्द्रियकी सहायता से ही काम लेते हैं। जिसमें भी हाथ वा अंगुलियोंका चमडा सबसे अधिक काम देता है । हाथसे छूकर हम अनेक पदाafat भले प्रकार जान सकते हैं ।
रसना - अर्थात् जिहा इन्द्रियका विषय रस (स्वाद) लेना है। रस पांच प्रकारका है । मिष्ट अम्ल कटु तिक्क लवण ये पांच प्रकारके रस हैं। गुड शक्कर मिश्री आदिके Forest मिष्ट रस (मीठा ) कहते हैं । इमली अमचूर नींबू ers ass fफटकरी यादिके स्वादको अम्लरस कहते हैं । नीम करेले कुटकी यादिके स्वादको कटुरस कहते हैं । सोंठ मिरच पीपल आदिके स्वादको तिक्त वा चरपरा रस कहते हैं। नमक सेंधा नोन जवाखार आदिके स्वादको लवण रस कहते हैं । इन पांच प्रकारके रसोंका ज्ञान रसना इन्द्रियसे ही होता है अर्थात रसना इन्द्रियके ( जिह्वा के ) द्वारा ही हम इन रसोंको जानते हैं । जो रस अपने मनको प्यारा लगे उसको सुरस वा सुस्वादु कहते हैं और जो रस अपने मनको बुरा लगे उसे विरस वा वेस्वाद कहते हैं । हम लोग जो बोलते हैं. उस बोलने में भी रसना इन्द्रियकी बहुत सहायता होती है । जिह्वा न होय तौ हमारे बहुतसे काम अटक जांय जिसके जिहा नहिं होती उसको मूक ( गूंगा ) कहते हैं ।