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________________ तृतीय भाग। यही नीके मन लाव रे । खातिरमैं आवै तो सलासी कर डॉल नहिं काल-चाल पर है अचानक ही आय रे ॥१२॥ १४ । नित्य नियम पूजा भाषा। अडिक। प्रथम देव अरहंत सुश्रुत सिद्धांत जू । गुरु निम्रय महंत मुकंतिपुर पंथ जू ।। तीन रतन जग माहिं सो ये मवि ध्याइये। तिनकी भक्तिप्रसाद, परम पद पाइये ॥ १॥ दोहा। । , पूजू पद आईतके, पू गुरुपद सार । पूजू देवी सरसुती, नित प्रति अष्टप्रकार ॥२॥ ओं ही देवशास्त्रगुरुसमूह ! अत्र अवतर भवतर । संवैाष्ट । ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुसमूह ! अत्र तिष्ठ सिष्ठ । ठः ठः। ही देवशास्त्रगुरुसमूह ! अब मम संनिहितो मवमव वार । ___ गीता। सुरपति उरग नरनाथ तिनकर वंदनीक सुपदप्रया। अति शोभनीक सुवर्ण इजल, देख छवि मोहित सभा ॥ : १ यदि यह वात तेरी समझमें भा नावें तो । २ सुधारक। ३ हालही. इसी चक1-४ यमराजका भाक्रमण वा डांका। ..
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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